स्वामी जी ने अपने प्रवचनों के माध्यम से संगत को संबोधित करते हुए कहा कि, उस वातावरण में जहां सच्चाई का स्थान अवैधता, उद्दंडता या अराजकता ने ले लिया हो, ईमानदारी, नैतिकता का पालन करने वाले लोगों को कुटिल और धोखेबाजो के साथ निर्वाह करना पड़ रहा हो। तो ऐसे में दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत होती है और यह तभी होता है जब हम अपने जीवन में अध्यात्म को आत्मसात कर लेते हैं ।जैसे ही हम विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हैं अध्यात्मिकता हमारी नकारात्मकता को दूर करने में हमारी मदद करती है। अध्यात्म हमारे नकारात्मक विचारों को सकारात्मक बनाने का साधन है ।इससे हमारे अशांत मन को शांति मिलती है और हम ईश्वर से जुड़ते हैं।
यह परम शक्ति हमें प्रेम और वरदानो से भर देती है ।हमें अनुभव होता है कि हम "पार ब्रह्म" के ही अंश हैं इस सत्य का वास्तविकता को स्वीकार करने पर संसार के साथ व्यवहार करना आसान हो जाता है। जब हम बाधाओं से पीड़ित होते हैं तो आध्यात्मिक रूप से जागरूक दृष्टिकोण हमें डगमगाने नहीं देता ।यह हमारी योग्यताओं को भरपूर रूप से उपयोग करने की प्रेरणा देता है ।अध्यात्म का अभ्यास हमारे मन को सत्य और शुद्धि की ओर मोड़ता है। यदि हमने अपने आंतरिक कोष को सकारात्मक बना लिया है तो हम बाधाओं को जीतने और नकारात्मक परिस्थितियों का सामना करने में हम सफल हो सकते हैं ।
अध्यात्म सांसारिक दुखों और पीड़ाओं से जूझने में भी हमारी मदद करता है। अध्यात्म पथ पर हम स्वीकार कर लेते हैं कि जो कुछ हो रहा है ईश्वर की इच्छा से ही हो रहा है। इस प्रकार की रची कृति हमारे संतुलन को बनाए रखने में मददगार होती हैं । स्वामी जी ने कहा कि ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण हमारे आंतरिक शक्ति को संजोए रखता है। जीवन में आध्यात्मिकता का सूत्रपात करने का तरीका ब्रह्म ज्ञान की ध्यान साधना है। सच्ची साधना यानी पूर्ण गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान और उनके द्वारा बताए गए साधना विधि के द्वारा हमारे विचार संशोधित होते हैं। हमें शुद्ध बहुमूल्य दिलासा मिलता है। सच्ची आध्यात्मिकता का स्पर्श हमारे हृदय और मन से ज्ञान के रोग को दूर कर देता है। हमारी जिंदगी को शांत निर्मल और आनंद में बना डालता है । कार्यक्रम के अन्तर्गत साध्वी बीना भारती, साध्वी हरविंदर भारती, साध्वी रीता भारती, साध्वी पल्लवी भारती, साध्वी योगिनी भारती, साध्वी चंद्रकला भारती, जी ने बहुत सुंदर भजनो का गुणगान किया l