जालंधर :-दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से बिधिपुर आश्रम में सप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम रखा गया । जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी त्रिनैना भारती जी ने प्रवचन किए।
साध्वी जी ने अपने विचारों में बताया कि गुरु माली है और शिष्य वृक्ष। गुरु माली की तरह बीज की तलाश करता है। फिर उसे उचित समय पर उचित भूमि में रोपित करता है। समय-समय पर उसे ज़रूरत के अनुसार खाद-पानी देता है। बीज धीरे-धीरे पौधा बनता है। इस अवस्था में भी माली पौधे की फिक्र और देखभाल में लगा रहता है। कभी मौसम, तो कभी जंगली जानवर, तो कभी कीटाणुओं से होने वाली बीमारियों से उसे बचाता है। जब वह पौधा बड़ा पेड़ बन जाता है, तो माली उसे पानी देना बंद कर देता है। क्योंकि अब तक वृक्ष माली की मदद से अपनी जड़ों को स्वयं इतनी गहराइयों तक फैला चुका होता है कि वह अपना इंतज़ाम, अपनी रक्षा स्वयं करना सीख जाता है। अब वह देने के काबिल हो जाता है। यात्रियों को छाया देता है, तो पक्षियों को उनका आशियां; फल-फूल देता है, तो अपने अर्क एवं जड़ों द्वारा औषधि के रूप में प्रयोग भी होता है। हरियाली फैलाकर वातावरण को प्रदूषण से मुक्त रखता है, तो वर्षा का माध्यम बनकर धरती एवं धरती पर रहने वाले प्राणियों की प्यास बुझाता है।
माली की तरह गुरु भी शिष्य को एक समय, एक स्थिति और एक हद तक सींचता है। गुरु तभी तक देता है जब तक उसे ज़रूरी लगता है। गुरु शिष्य को मात्र जड़ ही नहीं देता, बल्कि उन जड़ों को उनका विस्तार भी प्रदान करता है, जड़ों को उनका सागर दे देता है। फिर गुरु शिष्य को पेड़ की तरह देने की, बाँटने की, झुकने की कला सिखा देता है। फूल पेड़ के होते हैं, पर सुगन्ध उनमें माली की होती है। पत्तियाँ स्वयं वृक्ष की होती हैं, पर उनमें सौन्दर्य माली का होता है। पेड़ का आकार, उसका घनत्व, उसकी छाया सब वृक्ष का होता है, पर देख-रेख सब माली की होती है।
गुरु का हृदय धरती की तरह विशाल है। कहीं कठोर, तो कहीं संवेदनशील है। गुरु ऊर्जा का भंडार है। गुरु अपने ज्ञान और अपने अनुभव को स्थानांतरित करने की, सौंपने की कला जानता है l गुरु इस सृष्टि को बनाने वाले का मानवीकरण है। गुरु बांध है, परमात्मा और आत्मा के बीच का। हमारे सभी धार्मिक ग्रंथ कहते हैं कि एक पूर्ण गुरु के बिना एक मनुष्य जीवन का विकास होना असंभव है गुरु के द्वारा ही मानव जीवन का कल्याण संभव है।